अरविंद का जीवन | अनमोल विचार | शिक्षा

अरविंद का जीवन | अनमोल विचार | शिक्षा, selection Mind, SelectionMind

 

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अरविंद का जीवन | अनमोल विचार | शिक्षा





"संसार के दुख का निवारण केवल आत्मा के विकास से ही हो सकता है जिसकी प्राप्ति केवल योग द्वारा ही संभव है। योग से ही नई चेतना आ सकती है।"

- यह दृढ़ विश्वास अरविंद घोष जी का था।

संसार के दुख का निवारण केवल आत्मा के विकास से ही हो सकता है जिसकी प्राप्ति केवल योग द्वारा ही संभव है। योग से ही नई चेतना आ सकती है।" - यह दृढ़ विश्वास अरविंद घोष जी का था।



अरविन्द घोष या श्री अरविन्द एक महान योगी एवं दार्शनिक थे। पूरे विश्व में उनके दर्शन शास्त्र का बहुत प्रभाव रहा है और उनकी साधना पद्धति के अनुयायी कई देशों में पाये जाते हैं। यह कवि भी थे और गुरु भी।

उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर भी अपने विचार व्यक्त किए हैं तथा संस्कृति,राष्ट्रवाद,राजनीति, समाजवाद,साहित्य विशेषकर काव्य के क्षेत्र में उनकी कृतियां बहुचर्चित हैं।


जीवन परिचय

  • अरबिंदो घोष का जन्म 15 अगस्त 1872 को कलकत्ता के एक संपन्न परिवार में हुआ।
  • उनके पिता, कृष्णधन घोष, तब बंगाल में रंगपुर के सहायक सर्जन थे, और ब्रह्म समाज धार्मिक सुधार आंदोलन के पूर्व सदस्य थे। उनकी माता स्वर्णलता देवी थीं।
  • अरविंद घोष प्रारंभ से ही पाश्चात्य संस्कृति में पूर्ण तरंग हुए थे।
  • वे लगभग 13 वर्ष इंग्लैंड में रहे और वहीँ ICS बनने की तैयारी की और ICS लिखित परीक्षा पास की किन्तु घुड़सवारी में असफल होने के कारण ICS नहीं बन सके।
  • कैम्ब्रिज़ विश्वविद्यालय में उन्होंने भारतीय राजनीति का अध्ययन किया तथा सन् 1893 में भारत लौट आये।


अरबिंदो का भारत लौटना (Aurbindo returned to India)

  • इंग्लॅण्ड में यूनिवर्सिटी में पढ़ते हुए ही उनमें देशभक्ति की भावना जागृत होने लगी थी,सिविल सर्विस में उनकी रूचि इसीलिए नही थी,क्योंकि वो किसी भी तरह से ब्रिटिश सरकार की सेवा नहीं करना चाहते थे।
  • स्नातक होने पर अरबिंदो ने तय किया कि वो भारत लौटकर शिक्षक बनेंगे, अरबिंदो ने बाद में ये बात मानी भी कि भारत लौटना ही उनके आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत थी और भारत की माटी में उन्हें वो सुकून मिला था जिसकी उन्हें तलाश थी।
  • घोष 1893 में भारत लौटे थे और यहाँ बड़ोदा के शाही परिवार में उनकी नौकरी लग गयी। वो बहुत सी विदेशी भाषाओं के ज्ञाता थे,लेकिन तब भारतीय संस्कृति के बारे में उन्हें बहुत कम पता था।
  • उन्होंने अगले 12 वर्षों तक बड़ोदा में एक शिक्षण कार्य किया, महाराजा ऑफ़ गायकवाड के सेक्रेटरी और बड़ोदा कॉलेज के वाईस प्रिंसिपल के तौर पर काम किया।
  • इस दौरान ही उन्हें भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को समझने का मौका मिला,और धीरे धीरे उनमें राजनीति में रूचि जागृत हुयी। बडौदा में रहते हुए उन्होंने इंदु-प्रकाश नाम आर्टिकल लिखा।


"यह देश यदि पश्चिम की शक्तियों को ग्रहण करे और अपनी शक्तिओं का भी विनाश नहीं होने दे, तो उसके भीतर से जिस संस्कृति का उदय होगा, वह अखिल विश्व के लिए कल्याणकारिणी होगी। वास्तव में वही संस्कृति विश्व की अगली संस्कृति बनेगी।"

- अरविंद घोष

यह देश यदि पश्चिम की शक्तियों को ग्रहण करे और अपनी शक्तिओं का भी विनाश नहीं होने दे, तो उसके भीतर से जिस संस्कृति का उदय होगा, वह अखिल विश्व के लिए कल्याणकारिणी होगी। वास्तव में वही संस्कृति विश्व की अगली संस्कृति बनेगी।" - अरविंद घोष



 विद्रोही

  • बंगाल के विभाजन की घोषणा के बाद वे 1906 में औपचारिक रूप से कलकत्ता चले गए। अपनी सार्वजनिक गतिविधियों में उन्होंने गैर-सहयोग और निष्क्रिय प्रतिरोध का समर्थन किया, निजी तौर पर उन्होंने खुले विद्रोह की तैयारी के रूप में गुप्त क्रांतिकारी गतिविधि की, इस मामले से निष्क्रिय विद्रोह विफल हो गया।
  • उन्होंने 1902 में कलकत्ता की अनुशीलन समिति सहित युवा क्लबों की एक श्रृंखला स्थापित करने में मदद की। उन्हें मई 1908 में अलीपुर बम मामले के सिलसिले में फिर से गिरफ्तार किया गया।
  • एक बार जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने दो नए प्रकाशन शुरू किए, कर्मयोगिन अंग्रेजी में और धर्म बंगाली में। उन्होंने अपने ध्यान को आध्यात्मिक मामलों में बदलने के लिए उत्तरपाड़ा भाषण भी दिया।

 


पढो, लिखो, कर्म करो, आगे बढो, कष्ट सहन करो, एकमात्र मातृभूमि के लिए, माँ की सेवा के लिए।

- अरविंद घोष

पढो, लिखो, कर्म करो, आगे बढो, कष्ट सहन करो, एकमात्र मातृभूमि के लिए, माँ की सेवा के लिए। - अरविंद घोष


श्री अरबिंदो आश्रम (Sri Aurobindo Ashram)

श्री अरबिंदो आश्रम (Sri Aurobindo Ashram)
श्री अरबिंदो आश्रम (Sri Aurobindo Ashram)


  • पोंडीचेरी में अरबिंदो ने कुछ अनुयायियों के साथ ही आध्यात्मिक यात्रा शुरू की थी लेकिन समय के साथ जब उन्हें आश्रम स्थापित करना पड़ा तब उनके नाम के आगे श्री का उपयोग होने लगा। आश्रम की स्थापना मिरर रिचर्ड ने की थी जो कि फ्रेंच मूल की थी एवं अरबिंदो के आध्यात्मिक सहयोगी थी।
  • शुरू में अरबिंदो ने मिरर रिचर्ड में सिर्फ दयालुता और करुणा देखी थी इसलिए उनको आश्रम का दायित्व दिया, लेकिन बाद में वो खुद कहने लगे कि वो एवं मिरर 2 शरीर लेकिन एक आत्मा हैं, मतलब अरबिंदो ने भी रिचर्ड को अपने समकक्ष माना था।
  • रिचर्ड ने ही आश्रम का मेनेजमेंट सम्भाला था, थोड़े समय बाद उन्हें “मदर” माँ कहकर सम्बोधित किया जाने लगा और ये माना गया कि आध्यात्मिक बुद्धिमता और ज्ञान में वो अरबिंदो के समकक्ष ही थी। मदर को पूरा आश्रम सौपने के बाद अरबिंदो ने अपना ज्यादा से ज्यादा समय ध्यान और आध्यात्म को देना शुरू कर दिया।

"अब हमारे सारे कार्यों के लक्ष्य मातृभूमि की सेवा ही होनी चाहिए। आपका अध्ययन, मनन, शरीर ,मन और आत्मा का संस्कार सभी कुछ मातृभूमि के लिए ही होना चाहिए। आप काम करो, जिससे मातृभूमि समृद्ध हो।"

- अरविंद घोष

अब हमारे सारे कार्यों के लक्ष्य मातृभूमि की सेवा ही होनी चाहिए। आपका अध्ययन, मनन, शरीर ,मन और आत्मा का संस्कार सभी कुछ मातृभूमि के लिए ही होना चाहिए। आप काम करो, जिससे मातृभूमि समृद्ध हो।" - अरविंद घोष


• घोष की लिखी किताबे (Books wriiten by Aurbindo Ghose)

  •  दी योगा एंड इट्स ओबेज्क्ट्स और लव एंड डेथ
  •  दी लाइफ डिवाइन
  •  एसेज ऑन दी गीता
  •  दी मेसेज एंड मिशन ऑफ़ इंडियन कल्चर, दी माइंड ऑफ़ लाईट
  • 1909 में जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने अंग्रेजी में कर्मयोगिनी और बंगाली में धर्मा प्रकाशित करने शुरू किये। 
  • 1914 में अरबिंदो ने प्रतिमाह दार्शनिक पत्रिका आर्य शुरू की।


अरबिंदो से जुडी रोचक जानकारी (Interesting facts about Aurbindo Ghose)

  • इंग्लैंड में अरबिंदो का जीवन भारत जितना आसन और सुविधा सम्पन्न नही था, उन्होंने वहां पूरा एक साल रोज सुबह केवल 2 ब्रेड बटर और चाय से निकाला था।
  • मात्र 21 वर्ष की उम्र में उन्होंने बोम्बे से प्रकाशित होने वाला साप्ताहिक इंदु प्रकाश लिखना शुरू किया और एडिटर ने उनसे कहा कि वो सांस्कृतिक मुद्दों को बन्द करके राजनीति पर लिखे। इस कारण उनकी इसमें रूचि खत्म हो गयी और उन्होंने लिखना बंद कर दिया।
  • वो क्रांतिकारी गतिविधियों में जब सक्रिय थे। तब उन्होंने एक गुप्त समूह में शामिल हुए थे जिसका नाम लोटस एंड डैगर था, जहां सदस्य गुप्तता की शपथ लेते थे। ब्रिटिशर्स उनसे तब खौफ खाते थे, लार्ड मिन्टो ने कहा था कि वो इस समय सबसे खतरनाक व्यक्ति हैं जिससे हमे निबटना हैं।
  • एक बार वो महाराजा हरीसिंह के साथ कश्मीर यात्रा में थे तबी उन्हें आध्यात्मिक अनुभूति हुयी,और ये समझ आया कि आध्यात्म दुनिया अनंत हैं। अरबिंदो को लास्ट वर्जन मेरी का अवतार माना जाता था।


"यदि तुम किसी का चरित्र जानना चाहते हो तो उसके महान कार्य न देखो, उसके जीवन के साधारण कार्यों का सूक्ष्म निरीक्षण करो।"

- अरविंद घोष

यदि तुम किसी का चरित्र जानना चाहते हो तो उसके महान कार्य न देखो, उसके जीवन के साधारण कार्यों का सूक्ष्म निरीक्षण करो।" - अरविंद घोष


अरबिंदो को मिले सम्मान (Aurbindo:Awards and Achievments)

  • 1943 में उन्हें साहित्य के नोबल पुरूस्कार के लिए नामांकित किया गया,जबकि 1950 में उनके कविताओं में दिए योगदान, आध्यात्मिक और दार्शनिक साहित्य के लिए नामांकित किया गया।
  • उन्हें साहित्य में बटरवर्थ पुरूस्कार और इतिहास में दिए योगदान के लिए बेडफोर्ड पुरूस्कार भी दिया गया था।

अरबिंद घोष की मृत्यु (Death of Aurbindo)

  • 5 दिसम्बर 1950 को 78 वर्ष की उम्र में श्री अरबिंदो ने अपनी देह त्याग दी, उन्होंने काहा था कि वो अपने आध्यात्मिक कार्य दूसरी दुनिया से भी जारी रखेंगे।
    उनके पार्थिव देह को 4 दिन के लिए दर्शन हेतु रखा गया और 9 दिसम्बर को उनकी समाधि बनाई गयी, जिन लोगों ने उन्हें देखा था उनका कहना था कि उनका शव बिलकुल भी खराब नहीं हुआ था।
    उनके पार्थिव देह को 4 दिन के लिए दर्शन हेतु रखा गया और 9 दिसम्बर को उनकी समाधि बनाई गयी, जिन लोगों ने उन्हें देखा था उनका कहना था कि उनका शव बिलकुल भी खराब नहीं हुआ था।


अरविंद घोष को भारतीय एवं यूरोपीय दर्शन और संस्कृति का अच्छा ज्ञान था। यही कारण है कि उन्होंने इन दोनों के समन्वय की दिशा में उल्लेखनीय प्रयास किया।

कुछ लोग उन्हें भारत की ऋषि परंपरा (संत परंपरा) की नवीन कड़ी मानते हैं। श्री अरविंद घोष का दावा है कि इस युग में भारत विश्व में एक रचनात्मक भूमिका निभा रहा है तथा भविष्य में भी निभाएगा। उनके दर्शन में जीवन के सभी पहलुओं का समावेश है।