रवींद्रनाथ टैगोर की जीवनी व दर्शन | Rabindranath Tagore Biography and Philosophy in hindi |
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SelectionMind ! रवींद्रनाथ टैगोर की जीवनी व दर्शन | Rabindranath Tagore Biography and Philosophy in hindi |
आज हम ऐसे व्यक्ति के बारे में पढ़ेंगे,जिन्हें एशिया में सर्वप्रथम नोबेल पुरस्कार दिया गया।ऐसे व्यक्ति जिनकी दो रचनाएं,दो देशों का राष्ट्रगान बनी।
आज हम पढ़ेंगे,रवीन्द्रनाथ टैगोर के बारे में।
रवीन्द्रनाथ टैगोर Rabindranath Tagore
- रवींद्रनाथ टैगोर एक बांग्ला कवि, कहानीकार, गीतकार ,संगीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार थे।
- भारतीय संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ रूप से पश्चिमी देशों का परिचय और पश्चिमी देशों की संस्कृति से भारत का परिचय कराने में टैगोर की बड़ी भूमिका रही।
- आधुनिक भारत का असाधारण सृजनशील कलाकार टैगोर को माना जाता है।
- पहले ग़ैर-यूरोपीय थे,जिनको 1913 में साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार दिया गया।
- वे एकमात्र कवि हैं जिनकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बाँग्ला' उनकी ही रचनाएँ हैं।
जन्म
- 7 मई 1861 को रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म हुआ।
- इनके पिता देवेन्द्रनाथ टैगोर जोकि, ब्रम्ह समाज के वरिष्ठ नेता थे , सामाजिक जीवन जीने वाले व्यक्ति थे।
- उनकी पत्नी शारदादेवी, बहुत ही सीधी और घरेलू महिला थी।
रवीन्द्रनाथ टैगोर की शिक्षा Rabindranath Tagore Education
- रवीन्द्रनाथ टैगोर जन्म से ही, बहुत ज्ञानी थे, इनकी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता के, बहुत ही प्रसिद्ध स्कूल सेंट जेवियर नामक स्कूल मे हुई ।
- इनके पिता प्रारंभ से ही, समाज के लिये समर्पित थे ।
- इसलिये वह रबिन्द्रनाथ जी को भी, बैरिस्टर बनाना चाहते थे ।
- जबकि, उनकी रूचि साहित्य मे थी, रबिन्द्रनाथ जी के पिता ने 1878 मे उनका लंदन के विश्वविद्यालय मे दाखिला कराया परन्तु, बैरिस्टर की पढ़ाई मे रूचि न होने के कारण , 1880 मे वे बिना डिग्री लिये ही वापस आ गये ।
कार्यशैली
- 1901 में रवींद्रनाथ टैगोर ने बोलपुर के समीप शांतिनिकेतन की स्थापना की जो 1918 में विश्व भारती विश्वविद्यालय विश्वविद्यालय में परिवर्तित हो गया।
- उन्होंने राजनीति में भी सफलतापूर्वक प्रवेश किया और 1919 ईस्वी तक वे राजनीतिक कार्यों में रूचि लेते रहे।
- राजनीतिक सामाजिक और शैक्षणिक कार्यों को करते हुए भी होने की साहित्य साधना अनवरत रूप से चलती रही और कवि एवं साहित्यकार के रूप में उनका व्यक्तित्व निखरता रहा।
रवीन्द्रनाथ टैगोर की रचनाएँ / Books / Rabindranath Tagore Creations
- प्रमुख रचनाएं मानसी ,गोरा, डाकघर ,पोस्ट मास्टर ,काबुलीवाला आदि।
- गीतांजलि उनका विश्वविख्यात ग्रंथ है।
- गीतांजलि का अनुवाद विश्व की लगभग सभी भाषाओं में हो चुका है जिसमें गीतों का संग्रह है व दिव्य भावना से पूर्ण है।
- गीतों में असीम उल्लास व आनंद भरा है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर की उपलब्धियां
Rabindranath Tagore Achivements
- 1913 में टैगोर जी को गीतांजलि कृति के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- 1915 में भारत सरकार ने उन्हें नाइट की उपाधि प्रदान की।
- महात्मा गांधी ने रवीना टैगोर जी को गुरुदेव कहकर पुकारा।
- उनकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बाँग्ला' उनकी ही रचनाएँ हैं।
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Gandhi ji and Ravindranath tagore |
रवीन्द्रनाथ टैगोर, एक ऐसा व्यक्तित्व है जो, मर कर भी अमर है।
रवींद्रनाथ टैगोर का दर्शन Rabindranath Tagore's philosophy
- रवींद्रनाथ टैगोर महात्मा गांधी की तरह नव्य वेदांती थे।
- टैगोर एक समन्वयवादी थे। भौतिक तथा आध्यात्मिक जीवन के मध्य समन्वय, पूर्व व पश्चिम के मध्य समन्वय आदि विचार आज विश्व भर में विख्यात हैं।
- उनका दर्शन उपनिषदों के चिंतन एवं मनन के परिणाम स्वरुप विकसित हुआ था।
- अद्वैतवादी तथा ब्रह्मवादी होते हुए भी वह सर्वोच्च सत्ता को व्यक्तित्व प्रदान करते थे ।
- एक समय में परम सत्य को सूचना, तो दूसरे समय वह उसे उपास्य एवं स्थूल मानते थे।
- उन्हें प्रकृति में आनंद की सत्ता का आभास होता है, उन्हें जीव जगह तथा विश्व की बाह्य विविधता के मध्य एक ही सत्ता दिखाई देती है।
- इसीलिए मानव मात्र की एकता में उनका अनंत विश्वास था ।
- उनका विश्वास है कि ईश्वर पूर्णता का अनंत आदर्श है और मनुष्य उस पूर्णता को प्राप्त करने की शाश्वत प्रक्रिया।
रवींद्रनाथ टैगोर का राजनीतिक विचार
- रवीन्द्रनाथ टैगोर व्यक्तिगत सम्मान एवं उसकी स्वतंत्रता में आस्था रखते थे।
- वे धर्म भाषा लिंग के आधार पर कोई भेदभाव स्वीकार नहीं करते थे ।
- उनका मानना था कि सहयोग से व्यक्ति एवं राष्ट्र की निर्धनता समाप्त हो सकती है, पराधीनता की बेड़ी को भी काटना चाहते थे किंतु उनका कथन था कि
यदि देश आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से स्वावलंबी एवं स्वतंत्र हो जाएगा तो राजनीतिक स्वतंत्रता ही उसे प्राप्त हो जाएगी।
रवींद्रनाथ टैगोर का सामाजिक विचार
- रवीन्द नाथ टैगोर समाज सुधारक भी थे।
- ब्रह्म समाज से जुड़े होने के कारण उन्होंने जाति व्यवस्था ,अस्पृश्यता, धार्मिक कट्टरता आदि का विरोध किया।
- राष्ट्रीय सृजन एवं सामाजिक सुधार में गावों को प्रमुख स्थान देते थे।
- देश सेवा का महत्वपूर्ण कार्य ग्राम सेवा है किंतु यह ग्राम सेवा ग्रामीणों पर कृपा की तरह नहीं होनी चाहिए ,अपितु सेवा में ग्रामीणों को उचित सम्मान दिया जाना चाहिए।
- गांवों और शहरों के बीच की खाई को समाप्त करना चाहते थे।
रवीन्द्रनाथ टैगोर का मानववाद
- रवीन्दनाथ टैगोर मानव में आस्था रखते थे तथा वे उच्च कोटि के मानववादी थे।
- टैगोर का मानववाद आधुनिकतावाद लिए हुए था।
- उन्होंने अपने संपूर्ण दर्शन में मानव कल्याण को महत्वपूर्ण स्थान दिया है, एक महाकवि होने के नाते उन्होंने संवेग व स्थाई भावों के दमन का परामर्श नहीं दिया है। अपितु मानव की सभी शक्तियों के सामंजस्यपूर्ण विकास का समर्थन किया है।
- टैगोर और महात्मा गांधी के बीच राष्ट्रीयता और मानवता को लेकर हमेशा वैचारिक मतभेद रहा है। जहां गांधी जी पहले पायदान पर राष्ट्रवाद को रखते थे, वही टैगोरमानवता को राष्ट्रवाद से अधिक महत्व देते थे।
टैगोर ने गांधी जी के इस अवैज्ञानिक मत का भी विरोध किया था कि 1934 में बिहार में आए भूकंप भारतीय समाज में व्याप्त अस्पृश्यता का परिणाम थे, यह सवर्णों के लिए चेतावनी थी।
रवीन्द्रनाथ टैगोर का विश्ववाद
- टैगोर मानववाद के साथ विश्वबंधुत्व में भी विश्वास करते थे।
- अंतरराष्ट्रीय सद्भावना का विचार द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद आया, जबकि टैगोर ने इसका आरंभ विश्वभारती में बीसवीं सदी के आरंभ में ही कर दिया था।
आज हमने जाना रवीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) के बारे में।