राजा भोज | मध्यप्रदेश | Raja Bhoj | Indian History | Madhya Pradesh | Biography | Selection Mind

राजा भोज | मध्यप्रदेश | Raja Bhoj | Indian History | Madhya Pradesh | Biography | Selection Mind
राजा भोज | मध्यप्रदेश | Raja Bhoj | Indian History | Madhya Pradesh | Biography | Selection Mind


शस्त्रों के साथ-साथ शास्त्रों के भी महाज्ञाता
वास्तुशास्त्र, व्याकरण, आयुर्वेद और धर्म-वेदों का विद्वान
मंदिरों और इमारतों का निर्माणकर्ता
एक महान शासक
11 वीं सदी में मालवा और मध्य भारत के प्रतापी राजा भोज ।

दोस्तों आपने ये कहावत तो कई बार सुनी होगी,
कहां राजा भोज कहां गंगू तेली...'
 कई बार इसका इस्तेमाल किसी छोटे व्यक्ति की बड़े व्यक्ति से तुलना के लिए किया जाता है. 
भले ही ये कहावत मज़ाक के तौर पर बोली जाती हो लेकिन इसमें पराक्रम की कहानी भी छिपी हुई है. इस कहावत में दो नाम आते हैं एक तो राजा भोज और दूसरा गंगू तेली ।

कहावत में जिस गंगू तेली का ज़िक्र किया जाता है वो कोई एक नहीं, बल्कि दो व्यक्ति थे ।
 गंगू, कलचुरि नरेश गांगेय थे 
जबकि तेली, चालुक्य नरेश तैलंग थे।
 एक बार गांगेय और तैलंग ने मिल कर राजा भोज की नगरी धार पर आक्रमण किया, मगर उन दोनों को राजा भोज के पराक्रम के आगे घुटने टेकने पड़े।
 दोनों मिल कर भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सके।
 इस लड़ाई के बाद धार के लोगों ने गांगेय और तैलंग की हंसी उड़ाते हुए कहा कि 'कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली' ।
तभी से ये कहावत चल पड़ी और सदियों बाद आज भी आम बोलचाल में इस्तेमाल की जाती है ।

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर धार की नगरी को राजा भोज की नगरी कहा जाता है।
11 वीं सदी में ये शहर मालवा की राजधानी रह चुका है।

इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि राजा भोज शस्त्रों के साथ-साथ शास्त्रों के भी महाज्ञाता थे ।

उनको वास्तुशास्त्र, व्याकरण, आयुर्वेद और धर्म-वेदों का भी ज्ञान था। उन्होंने इन विषयों पर कई किताबें और ग्रंथ भी लिखे। राजा भोज ने अपने शासनकाल के दौरान कई मंदिरों और इमारतों का निर्माण करवाया था ।

गुजरात में जब महमूद गजनवी (971-1030 ई.) ने सोमनाथ का ध्वंस किया तो इतिहासकार ई. लेनपूल के अनुसार यह दु:खद समाचार शैव भक्त राजा भोज तक पहुंचने में कुछ सप्ताह लग गए। तुर्की लेखक गरदिजी के अनुसार उन्होंने इस घटना से क्षुब्द होकर सन् 1026 में गजनवी पर हमला किया और वह क्रूर हमलावर सिंध के रेगिस्तान में भाग गया।


तब राजा भोज ने हिंदू राजाओं की संयुक्त सेना एकत्रित करके गजनवी के पुत्र सालार मसूद को बहराइच के पास एक मास के युद्ध में मारकर सोमनाथ का बदला लिया और फिर 1026-1054 की अवधि के बीच भोपाल से 32 किमी पर स्थित भोजपुर शिव मंदिर का निर्माण करके मालवा में सोमनाथ की स्थापना कर दी। विख्यात पुराविद् अनंत वामन वाकणकर ने अपनी पुस्तक 'द ग्लोरी ऑफ द परमाराज आफ मालवा' में भोजराज की विजय की पुष्टि की है।


राजा भोज ने सर्वप्रथम अपनी राजधानी उज्जैन से धार परिवर्तित की ।
 अपने विरोधी शासक जैसे चंदेल, प्रतिहार, सोलंकी ,कलचुरी आदि को पराजित किया ।
  साम्राज्य विस्तार खानदेश, चितौड़गढ़, गुजरात एवं गोदावरी घाटी तक फैलाया ।

 राजा भोज स्वयं एक महान कवि व विद्वान थे एवं स्वयं कविराज की उपाधि प्राप्त थे ।
रचनाएं 
  • सरस्वती कंठाभरण – व्याकरण
  • समरांगण सूत्रधार – शिल्पशास्त्र
  • विद्या विनोद व सिद्धांत संग्रह – योगशास्त्र
  • आयुर्वेद सर्वस्व - चिकित्सा शास्त्र
  • संगीत प्रकाश - संगीत शास्त्र

राजा भोज ने अपने दरबार में धनंजय व पदमगुप्त जैसे विद्वानों को संरक्षण दिया ।
शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए धार में संस्कृत विश्वविद्यालय का निर्माण कराया।
सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए सरस्वती मंदिर का निर्माण कराया

अपने क्षेत्र में नगरीकरण एवं व्यवसायिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए भोजपुर नामक नगर की स्थापना की ।
चित्तौड़गढ़ विजय के उपलक्ष्य में त्रिभुवन नारायण मंदिर का निर्माण कराया।

राजा भोज एक हिंदू धर्म अनुयायी शासक थे।
इन्होंने भोजपुर में विश्व में सबसे बड़े शिवलिंग की स्थापना की 
लेकिन सभी धर्मों के व्यक्तियों को समान संरक्षण दिया अर्थात धर्म सहिष्णु शासक थे।

किसानों के उत्थान हेतु ना केवल उन्हें ऋण प्रदान किए बल्कि सिंचाई को बढ़ावा देने के लिए भोज ताल का निर्माण कराया।

साम्राज्य को स्थायित्व प्रदान नहीं कर सके ।
सीमावर्ती राज्यों के साथ मित्रता पूर्वक संबंध स्थापित करने में असफल रहे ।


उपर्युक्त सीमाओं के बावजूद राजा भोज मध्यकालीन शासकों में सर्वोत्तम हैं।
उनका प्रशासन सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की नीति पर आधारित था।

मध्य प्रदेश सरकार ने उनकी स्मृति में भोज प्रतिमा तथा भोज विश्वविद्यालय व भोज हवाई अड्डे का निर्माण कर उनको सच्ची श्रद्धांजलि प्रदान की है।